भोलाराम का जीव Question Answer Class 10 hindi questions answer
भोलाराम की जीव
1.
सही विकल्प का चयन करो-
(क)
भोलाराम के जीव
ने कितने दिन पहले देह त्यागी थी?
(क)
तीन दिन पहले
(ख)
चार दिन पहले
(ग)
पाँच दगिन पहले
(घ)
सात दिन पहले
उत्तर: पाँच दिन पहले।
(ख)
नारद भोलाराम का
घर पहचान गया-
(क) माँ-वेटी के सम्मिलित क्रंदन सुनकर
(ख) उसका दूटा- फूटा मकान देखकर
(ग) घर के बगल में नालेल के को लदेखकर
(घ) लोगों से घर का पता पुछकर
उत्तर: माँ-बेटी के सम्मिलित क्रंदन
सुनकर।
(ग)
धर्मराज के
अनुसार नर्क में इमारतें बनाकर रहनेवालों में कौन शामिल है?
(क)
ठेकेदार
(ख)
ओवरसीय़र
(ग)
ईंजीनिय़र
(घ)
उपर्क्यत सभी
उत्तर: (घ) उपर्क्यत सभी
(घ) बड़े साहब ने
नारद को भोलाराम के दरख्वास्तों पर वजन रखने की सलाह दी। यहांँ' वजन' का अर्थ है-
(क) पेपरवट
(ख) वीणा
(ग) रिसवत
(घ) मिठाइ का दुकान
उत्तर: रिश्वत।
2. पूर्ण
वाक्य का में उत्तर दो:
(क) भोलाराम का घर किस शहर में था?
उत्तर: भोलाराम का घर जबलपुर शहर में था।
(ख) भोलाराम को सेवानिवृत हुए कितने वर्ष हुए थे?
उत्तर: भोलाराम को सेवानिवृत हुए पाँच
वर्ष हुए थे।
(ग) भोलाराम की पत्नी ने भोलाराम को किस बीमारी का शिकार बताया?
उत्तर: भोलाराम की पत्नी ने भोलाराम को 'गरीबी की बीमारी' का शिकार बताया।
(घ) भोलाराम ने मकान मालिक को कितने साल से किराया नहीं दिया था?
उत्तर: भोलाराम ने मकान मालिक को एक साल
से किराया नहीं दिया था।
(ङ) बड़े साहब ने
नारद से भोलाराम की पेंशन मंजूर करने के बदले क्या मांगा ।
उत्तर: बड़े साहब ने नारद से भोलाराम की
पेंशन मंजूर करने के बदले में उनकी वीणा माँगी।
3. संक्षेप में उत्तर दो:
(क) 'पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।'- यहाँ किस घटना का संकेत मिलता है?
उत्तर: जब भी मनुष्य की अंतिम घड़ी आती
है, तो धर्मराज अपने यमदूत को उसका प्राण
लाने भेजते हैं। ताकि धर्मराज के दरबार में उसके कर्म के अनुसार स्वर्ग या नर्क
में उसे भेजा जा सके। भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले ही देह त्याग दी थी। पर
यमदूत अभी तक भोलाराम को लेकर दरबार में हाजिर नहीं हुआ था। ऐसा कभी नहीं हुआ था।
यहाँ इसी घटना का संकेत मिलता है।
(ख) यमदूत ने भोलाराम के जीव के लापता होने के बारे में क्या बताया?
उत्तर: यमदूत ने भोलाराम के लापता होने
के बारे में यह बताया कि जब उसने भोलाराम के जीव को पकड़ा और यमलोक की यात्रा हेतु
नगर के बाहर आते ही दोनों एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार होने ही वाले थे कि वह उसके
चंगुल से निकल भागा। उसने पाँच दिनों तक उसकी तलाश में सारा ब्रह्मांड छान डाला।
पर भोलाराम का अता पता नही मिला था ।
(ख) धर्मराज ने नर्क में किन-किन लोगों के आने की पुष्टि की ?
उन लोगों ने क्या-क्या अनियमितताएँ की थी?
उत्तर: धर्मराज ने नर्क में बड़े-बड़े
इंजीनियर, ठेकेदार और ओवरसीयर के आने की पुष्टि की। उन लोगों ने
अनेक अनियमितताएँ की थी। जिनमें बड़े-बड़े इंजीनियर ने ठेकेदार के साथ मिलकर भारत
की पंचवर्षीय योजनाओं का पैसा खाया। ओवरसीयर ने तो मजदूरों की हाजरी भरकर पैसा
खाया,
जो कभी काम पर आए ही नहीं थे।
(ग) भोलाराम की पारिवारिक स्थिति पर प्रकाश डालो।
उत्तर: भोलाराम जबलपुर शहर के घमापुर
मोहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे के टूटे-फूटे मकान में अपनी पत्नी, दो लड़के और एक लड़की के साथ रहता था। छोटी सी सरकारी नौकरी से अपना परिवार
चला रहा था। पर जब नौकरी से रिटायर हुआ तो पेंशन के पैसे उसे मिलने चाहिए थे, पर पांँच साल पहले रिटायर होने के बावजूद उसे पेंशन नहीं मिला। जिसके चलते
उसकी घर की स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी। घर के गहने, बर्तन
सब बिक चुके थे। यहाँ तक कि भोलाराम ने घर का भाड़ा भी एक साल से नहीं दिया था। इस
आर्थिक स्थिति के कारण अंत में उसने संसार ही छोड़ दिया।
(ङ) भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वजन नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होगी।'- दफ्तर के बाबू के ऐसा कहने का क्या आशय था।
उत्तर: भोलाराम ने दरखास्त तो भेजी थी, पर उन पर वजन नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होगी, ऐसा कहने से दफ्तर के बाबू का आशय यह था कि भोलाराम ने पेंशन मंजूर करवाने के
लिए सरकारी कर्मचारियों को देने के लिए दरख्वास्तों के साथ पैसे नहीं रखे थे।
अर्थात भोलाराम को रिश्वत देनी चाहिए थी। आज के इस जमाने में बिना घूस दिए कोई काम
नहीं होता। इसीलिए भोलाराम का काम नहीं बना और उसकी अर्जी कहीं फाइल में दवे किसी
कोने में पड़ी रही।
(च) चपरासी ने नारद को क्या सलाह दी?
उत्तर: नारद को कार्यालय में इधर से उधर
बाबू और अफसरों के यहाँ घूमता हुआ देख, चपरासी ने नारद को सलाह दी कि यहाँ साल भर भी चक्कर लगाते रहेंगे तो आपका काम नहीं
होगा। आप सीधे बड़े साहब से मिली। उन्हें अगर खुश कर लिया तो समझो आपका काम हो
गया।
(छ) बड़े साहब ने
नारद को भोलाराम के पेंशन केस के बारे में क्या बताया?
उत्तर: बड़े साहब ने भोलाराम के पेंशन
केस के बारे में नारद को बताया कि उनका कार्यालय भी एक मंदिर की तरह है यहाँ भी दान-पूर्ण करना पड़ता है। भोलाराम ने पेंशन
पाने के लिए अर्जी के ऊपर वजन नहीं रखा था। यानी अफसरों को रिश्वत नहीं दी। इसलिए
उसकी अर्जी आज तक फाइल में दबी पड़ी है। पेंशन का केस कई दफ्तरों से होकर जाता है
और उनमें तुरंत काम करने के लिए अफसरों को रिश्वत देनी पड़ती है। लेकिन भोलाराम ने
यही नहीं किया। जिससे कारण उसका काम आज तक रुका हुआ है।
(ज) 'भोलाराम का जीव' नामक व्यंगात्मक कहानी समाज में फैले भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी का पर्दाफाश करता है। कहानी के आधार पर पुष्टि करो।
उत्तर: भोलाराम का जीव एक व्यंगात्मक कहानी है। लेखक हरिशंकर परसाई ने इस
कहानी के माध्यम से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का पर्दाफाश व्यंगात्मक तरीके से
क्या है। इस कहानी में भोलाराम एक सरकारी कर्मचारी होता है,जो पाँच साल से अपनी पेंशन की अर्जी पास कराने के लिए दफ्तरों में चक्कर काटता
फिरता है। पर उसका काम नहीं होता। आखिर इन सब से हारकर वह मृत्यु का रास्ता अपनाता
है। लेखक ने भोलाराम की मौत के बाद उसका जीव यमलोक ना जाकर पेंशन की अर्जी में
अटकने की बात को लेकर यह दर्शाने की कोशिश की है कि आज समाज में भ्रष्टाचार एवं
रिश्वतखोरी की जड़ें गहरी होती जा रही है।आज भोलाराम जैसे कई गरीब व्यक्ति जो
रिश्वत से अनजान होते हैं या रिश्वत देने में असमर्थ होते हैं उनका काम सरकारी
दफ्तरों में कहीं ना कहीं इसी प्रकार लटका रह जाता है। बड़े अफसर जो वजन रखने की
बात कहते हैं इससे यह साफ साबित होता है कि आज कि समाज को रिश्वतखोरी ने पूरी तरह
जकड़ लिया है।
4. आशय स्पष्ट करो:
(क) दरखास्तें पेपरवेट से नहीं दबतीं।
उत्तर: पेपरवेट का काम होता है जरूरी
कागजातो को हवा के झोंको से बचाना। उड़ते कागजों को तो पेपरवेट रोक लेता है, पर यदि किसी कार्यालय में किसी काम को करवाने के लिए खाली कागजातों के साथ
पैसों का वजन नहीं देंगे तो काम नहीं बनेगा अर्थात पैसों का वजन रखना पड़ता ही है। तभी उन अर्जीयों पर काम होगा।
विडंबना यह है कि आज सरकारी दफ्तरों पर इसी तरह काम करवाने के लिए घूस देनी पड़ती
है। चपरासी से लेकर बड़े अफसरों तक घूस का सिलसिला चलता आ रहा है। जो जितनी जल्दी
और जितना ज्यादा घूस दे सकेगा उसका काम भी उतनी ही जल्दी होगी।
(ख) यह भी एक
मंदिर है। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है।उत्तर: धार्मिक स्थलों में लोग अपनी फरियाद लेकर वहाँ दान-पुण्य कर आते हैं। ताकि उनकी मनोकामना पूरी
हो सके। सरकारी कार्यालय या अन्य दफ्तरों पर यदि किसी को अपना काम करवाना है तों
वहाँ बैठे बड़े अफसरों को रिश्वत देनी पड़ती है। यानी कहा जाए तो मंदिर की तरह
उन्हें भी प्रसाद चढ़ाना पड़ता है। अर्थात जो दान पूर्ण करेगा उसका काम बनेगा।
नहीं तो उसकी फरियाद अनसुनी कर दी जाएगी। इसीलिए लेखक ने व्यंग्य के तौर पर इन
भ्रष्टाचार से भरे दफ्तरों को मंदिर कहा है और उन्हें दी जाने वाली रिश्वत को दान।